भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

महानगर के जंगल में / अश्वघोष

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

महानगर के जंगल में हम
घूम रहे होते
शायद हमने कर डाले
अनचाहे समझौते

संधिपत्र तो लिखे
प्यार की क़ीमत नहीं चुकी
अपने ही अधरों में बन्दी
अपनी हंसी-ख़ुशी
फूटे रिश्तों में
बैलों से जोते
महानगर के जंगल में हम
घूम रहे होते

अम्मा की रामायण-गीता
सहसा रूठ गई
हरिद्वार के गंगाजल की
शीशी फूट गई
पानी पर तिनके की नाईं
घूमे समझौते
शायद हमने कर डाले
अनचाहे समझौते