महाप्रस्थानिका / अशोक कुमार
स्वर्ग के रास्ते पहले द्रौपदी गिरी
युधिष्ठिर ने बताया
यह सबसे अधिक अर्जुन से प्रेम करती थी
इसकी आस्था एकांगी थी
इसलिए गिरी
स्वर्ग के रास्ते फिर सहदेव गिरा
युधिष्ठिर ने बताया
यह सबसे अधिक विद्वान समझता था खुद को
यह मिथ्यभिमान ले गिरा इसे
फिर नकुल गिरा
युधिष्ठिर ने कहा
इसे अपने रूप पर गुमान था
रूपवान भी गिर जाते हैं
स्वर्ग के रास्ते
फिर अर्जुन गिरा
सशरीर स्वर्ग पहुँचने के पहले
युधिष्ठिर ने बताया
इसे शक्ति का अभिमान था
कि शत्रुओं का नाश कर डालेगा
इस दर्प ने गिरा दिया इसे
फिर भीम गिरा
युधिष्ठिर ने स्वगत कथन किया
कि इसे दैहिक बल का अभिमान था
इसलिए गिरा
स्वर्ग के रास्ते युधिष्ठिर गिरा नहीं
पर नरक के रास्ते पहुँचा
कि उसने सत्य का सहारा छोड़ा था एक बार
मति, रूप और बल का दर्प छल था
सत्य से छल-छल था
प्रेम की निष्ठा में कौन-सा छल था
या फिर यह स्वर्ग का प्रपंच था कोई
महाप्रस्थानिका में।