Last modified on 8 मार्च 2017, at 22:37

महाभारत का युद्ध और माँ / कुमार कृष्ण

जब कभी फुर्सत मिलती है
तो माँ के बारे में सोचता हूँ
वह कभी घण्टी तो कभी हारमोनियम लगती है
थाली और कटोरी बजाती हुई माँ
कभी हँसुआ तो कभी दराँती लगती है
घास के गट्ठर में दबी हुई माँ
रविवार को बचाकर रखना चाहती है सिर्फ अपने लिए
वह देख सके इतमिनान से महाभारत का युद्ध
माँ को समझ नहीं आती बड़ी-बड़ी बातें
बहुत खुश नजर आती है माँ जब-
एक-एक के मरते हैं कौरव
पांचाली के चीर हरण पर-
बहुत जोर-जोर से रोती है माँ।