भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
महावृक्ष के नीचे (दूसरा वाचन) / अज्ञेय
Kavita Kosh से
वन में महावृक्ष के नीचे खड़े
मैं ने सुनी अपने दिल की धड़कन।
फिर मैं चल पड़ा।
पेड़ वहीं धारा की कोहनी से घिरा
रह गया खड़ा।
जीवन : वह धनी है, धुनी है
अपने अनुपात गढ़ता है।
हम : हमारे बीच जो गुनी है
उन्हें अर्थवती शोभा से मढ़ता है।
ग्रोस पेर्टहोल्ज (आस्ट्रिया), 15 मई, 1976