भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
महावृक्ष के नीचे (पहला वाचन) / अज्ञेय
Kavita Kosh से
जंगल में खड़े हो?
महारूख के बराबर
थोड़ी देर खड़े रहो
महारूख ले लेगा तुम्हारी नाप।
लेने दो।
उसे वह देगा तुम्हारे मन पर छाप।
देने दो।
जंगल में चले हो?
चलो चलते रहो।
महारूख के साथ अपना नाता बदलते रहो।
उस का आयाम उस का है, बहुत बड़ा है।
पर वह वहाँ खड़ा है।
और तुम चलते हो चलते हुए भी भले हो।
वह महारूख है
अकेला है, वन में है।
तुम महारूख के नीचे-अकेले हो, वन तुम में है।
ग्रोस पेर्टहोल्ज़ (आस्ट्रिया), 15 मई, 1976