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महिमा / राम सिंहासन सिंह

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मनुआ के ई सून्य गगन में
उमड़ल करिया-करिया बादल
बिजली चमकल, होठवा हँसलक
देखऽ, अँखिया बरसल छल-छल।
हरा-हरा हो गेल अचानक
घाव पुरनका हमर मन के
जी उठलइ फिर होके ताजा
पौधा सहमल ऊ बचपन के
ओ ही बचपन जहाँ न कोनो
उथल-पुथल हल सान्त सरोबर
चुरगुन अइसन चहक रहल हल
सबके मनुआ डगर-डगर पर।
घर-घर रस के प्रीत बहऽ हल
अमरित अइसन हल सब बानी
साँझ-सबेरे लोरी गा के
जहाँ जगाबे दादी-नानी!
भाई-भाई में हल हरदम
मन में सबके प्रेम-अथाह
झगड़ा-झंझट कभी न केकरो
करलक घर में कहीं तबाह
तरह रहल हे अखियाँ हमर
कइसे ऊ दिन फिर आ जयतो
कइसे मनुआ पुरबाई में
कोकिल अइसन जी भर गयतो
स्याम बसल हथ मन-मंदिर में
उनके गीत सुनाबऽ ही
उनके से फिर घर बस जयतइ
उनके महिमा गाबऽ ही!