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महिला दिवस / पंकज सुबीर

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जुट पड़ी हैं ढेर सारी महिलाएँ
सभागार में,
आठ मार्च जो है...
लिपिस्टिक से पुते होठों,
कांजीवरम की साड़ियों,
और इत्र फुलैल का महिला दिवस!
मेधा पाटकर तो नहीं लगाती कभी भी
लिपिस्टिक!
मेरे ख्याल से लक्ष्मी बाई ने भी
नहीं लगाई होगी कभी!
किरण बेदी को देखा है कभी आपने?
कांजीवरम की साड़ी पहने!
हाँ हेमा मालिनी को अवश्य
देखा होगा!
सही भी है,
बहुत बड़ा फर्क है,
कल्पना चावला होने में
और राखी सावंत होने में,
फिर ये महिला दिवस है किसका
मेधा पाटकर का?
या फिर
एश्वर्या राय का?
और यदि यही है
सभ्य समाज का महिला दिवस
तो फिर इसमें नया क्या है
आख़िर...?
है ना नया!
लिपिस्टिक से रंगे होंठ
आज किरण बेदी, कल्पना चावला
और अरुंधती राय जैसे नामों को
दोहरा रहे हैं,
उन नामों को जो वास्तव में
हैं ही नहीं नाम महिलाओं के,
ये तो विद्रोह के नाम हैं
विद्रोह महिला बने रहने से,
विद्रोह इत्र फुलैल और कांजीवरम से,
आप ही बताइये
क्या आप सचमुच मेधा पाटकर
को महिला की श्रेणी में रखेंगे?
यदि रखते हैं
तो फिर ठीक है!
सड़क किनारे पत्थर तोड़ती
धनिया बाई के पसीने
की बदबू से बहुत दूर
इत्र फुलैल से महकता
गमकता ये सभागार
बधाई हो आपको!