भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
महुए का फूल / स्वप्निल श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
टप-टप चूते हैं महुए के फूल
टप-टप-टप जैसे गिरती हैं वर्षा की मोटी बूंदें
चिरई की ठोंर की तरह दिखते हैं, महुए के फूल
हवा में हिलकोरते हुए भीनी-भीनी रस भरी गंध
ज़मीन पर बिखरे हुए पीले महुए के फूल
टाप्स की तरह हैं
जिन्हें हवा ने पहन लिया है
हवा थिरक रही है अलमस्त स्त्री की तरह
स्त्री महुए के पेड़ से थोड़ी दूर देख रही है यह खेल
वह खाँची में इकट्ठे कर रही है फूल
वह हिला रही है डाल
कि फूल झरें और उसे खाँची सहित ढँक लें
वह चाहती है
महुए का पेड़ होना