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माँ! पापा भी मर्द ही हैं न! / रवीन्द्र दास
Kavita Kosh से
बड़ी हिम्मत जुटा कर
सहमते हुए पूछती है माँ से
युवती हो रही किशोरी-
माँ! पापा भी मर्द हैं न?
मुझे डर लगता है माँ! पापा की नज़रों से...
माँ! सुनो न! विश्वास करो माँ!
पापा वैसे ही घूरते हैं जैसे कोई अजनबी मर्द...
माँ! पापा मेरे कमरे में आए
माँ! उनकी नज़रों के आलावा हाथ भी अब मेरे बदन को टटोलते हैं
माँ! पापा ने मेरे साथ ज़बरदस्ती की
माँ! पापा की ज़बरदस्ती रोज़-रोज़...
माँ! मैं कहाँ जाऊँ!
माँ! पापा ने मुझे तुम्हारी सौत बना दिया
माँ! कुछ करो न!
माँ! कुछ कहो न!
माँ! मैं पापा की बेटी नहीं, बस एक औरत हूँ?
माँ! औरत अपने घर में भी लाचार होती है न!
माँ! मेरा शरीर औरताना क्यों है!
बोलो न! बोलो न! माँ!