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माँझी चल / त्रिलोकीनाथ दिवाकर
Kavita Kosh से
माँझी चल, चल-चल माँझी चल
सन-सन बहै हवा पुरबैया
बीच गंगा में डोलै नैया
पानी में ढियौंस उठी के
गरजै छै हलबल,
माँझी चल, चल-चल माँझी चल
पाल डाढो कॅ कुछ नै बुझै
पतियाली कॅ आँख नै सुझै
थाहा लगाय लॅ डूबै लग्गी
थाहौं गेलै निगल,
माँझी चल, चल-चल माँझी चल
पानी मॅ नाव गुडियाबै कखनू
हवा में नाव उड़ियाबै कखनू
हरदम मोन जेनाँ लागै
जान गेलो निकल,
माँझी चल, चल-चल माँझी चल
संकट में छै जिनगी फसलो
नावो जाय छै किन्नंे भसलो
पार लगाबो हे ‘‘त्रिलोकी’’
सूझौं तोरा सकल
माँझी चल, चल-चल माँझी चल