माँ, अब मैं समझ गया / सुशान्त सुप्रिय
मेरी माँ
बचपन में मुझे
एक राजकुमारी का क़िस्सा
सुनाती थी
राजकुमारी पढ़ने-लिखने
घुड़सवारी , तीरंदाज़ी
सब में बेहद तेज़ थी
वह शास्त्रार्थ में
बड़े-बड़े पंडितों को
हरा देती थी
घुड़दौड़ के सभी मुक़ाबले
वही जीतती थी
तीरंदाज़ी में उसे
केवल ' चिड़िया की आँख की पुतली ' ही
दिखाई देती थी
फिर क्या हुआ --
मैं पूछता
एक दिन उसकी शादी हो गई --
माँ कहती
उसके बाद क्या हुआ --
मैं पूछता
फिर उसके बच्चे हुए --
माँ कहती
फिर क्या हुआ --
मैं पूछता
फिर वह बच्चों को
पालने-पोसने लगी --
माँ के चेहरे पर
लम्बी परछाइयाँ आ जातीं
नहीं माँ
मेरा मतलब है
फिर राजकुमारी के शास्त्रार्थ
घुड़सवारी और
तीरंदाज़ी का
क्या हुआ --
मैं पूछता
तू अभी नहीं
समझेगा रे
बड़ा हो जा
खुद ही समझ जाएगा --
यह कहते-कहते
माँ का पूरा चेहरा
स्याह हो जाता था
माँ
अब मैं समझ गया