माँ और नानी की संदूक / दीपक जायसवाल
मेरी माँ जब अपने मायक़े से लौटती
नानी बहुत दूर तक उन्हें छोड़ने आया करतीं
गाँव के छोर पर एक ऐसी जगह थी
जहाँ से नानी को लौटना होता
और हमारी अम्मा को दूर किसी परदेस में जाना होता
जहाँ उनकी अम्मा नहीं होंगी
मेरी नानी बहुत मज़बूत थी
पर मुझे याद है उस जगह जाकर वह रो पड़ती थी
माँ भी नानी के कंधे में सिमटकर ख़ूब रोती
नानी जैसे-जैसे बूढ़ी होती गयी
वह देर तक गाँव के उस छोर पर रुकने लगी थीं
देर तक तकती रहतीं जब तक कि
हमारी अम्मा ओझल नहीं हो जाती।
नानी के पास एक जादुई संदूक थी
जैसे की मेरी अम्मा के पास भी एक है
अम्मा जब भी नानी के घर जाती
नानी की संदूक ज़िंदा हो जाती
बहुत देर तक नानी उसमें कुछ खोजती रहती
जाने से पहले हमारी अम्मा को बड़े जतन से कुछ देती
मुझे हमेशा लगता कि इस संदूक को
सिर्फ़ नानी ही खोल सकती थीं
जब नानी को लगता कि उन्हें कोई नहीं देख रहा
उस वक़्त नानी उस संदूक से बात करती थीं
कभी कभी उस संदूक पर सिर रखकर रोती भी थीं
नानी यह संदूक अपने माँ के यहाँ से लायी थी
नानी हमारी अम्मा को ख़ूब मानती
जैसे कि उनकी अम्मा उन्हें मानती थी
जब दोनों का मिलना हो पाता
पता नहीं किस ज़माने की बात करके ख़ूब हँसते
बिलकुल छोटी-सी छोटी बात पर
घंटो उनकी याद में खोए रहते
नानी मेरी बहुत बढ़ियाँ किस्सागो थी
सुनाते-सुनाते जब कोई महुआ घटवारिन का ज़िक्र आता
वे रोने लगती
पर मेरे बड़े भाइयों से मुझे सख़्त हिदायत मिली थी
कि जब वह रोएँ तो
उनकी आँखों की तरफ़ नहीं देखना
नहीं तो वह कहानी नहीं सुनाएँगीं।
नानी के पास बहुत ज़्यादा क़िस्से नहीं थे
पर उन क़िस्सों को नानी से अच्छा
कोई नहीं सुना सकता था
मरने से पहले उनके सारे क़िस्से एक जैसे हो गये थे
मरने से पहले नानी
हमारी अम्मा को बहुत याद किया करती थी
नानी जब मरी अम्मा कई दिनों तक रोती रहीं
कई दिनों तक उन्होंने कुछ नहीं खाया
उस दफ़ा उस गाँव के छोर को
बहुत देर तक तकती रहीं
जहाँ नानी उन्हें छोड़ने आया करती थीं
अब भी अम्मा हर बार हम लोगों से बताती हैं
कि हमारी अम्मा अमुख किनारे तक मुझे छोड़ने आती थी
शायद इस लालच से कि थोड़ी देर और साथ रह ले।
जब नानी मरीं उनकी जादुई संदूक से
कुछ ख़ास नहीं निकला
एक दो साड़ियाँ थी
जिन्हें पहनकर वह इस घर में
अपने मायके से आयी थी
नाना का पहनाया मंगलसूत्र था
कंगन था सिंदूरदानी थी
अम्मा कि एक दो चीज़ें थीं
जिन्हें विदाई के वक़्त अम्मा ने नानी से कहा था
हिफ़ाज़त से रखने को
नानी ने उन्हें बहुत हिफ़ाज़त से रखा था
जिन्हें अम्माँ भी भूल गयीं थीं।
जाने वह क्या चीज़ थी जो नानी को उनकी अम्मा ने
अपने संदूक से निकालकर दिया
फिर नानी ने अम्मा को दिया
अब मेरी अम्मा मेरी बहनों को देती हैं।