भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

माँ का आँचल / भावना सक्सैना

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नेह की बारिश बहुत थी
माँ तेरा आंचल नहीं था।
दूर थी माँ जब पुकारा
मुझको तेरा बल नहीं था
मचलती ठुनकती रूठती हंसती
दुलार भरी बाहों में पलती
दीखती थी सारी सखियाँ
माँ मुझे सम्बल नहीं थाय़

कर दिया तुमने अलग जब
ममता कि यूँ न कुछ कमी थी
अश्रुओं की थी नमी,
स्नेह की पाती कईं थीं
माँ मेरी यूँ तो कईं थी
एक तेरा आँचल नहीं था।

मजबूर कितनी तुम थी उस दिन
कितने तेरे अश्रु गिरे थे
छोड़ आई थी मुड़े बिन
मैं समझ पाती हूँ अब
तिनके-सी तब सागर में थी
कश्ती जिसे साहिल नहीं था।

फ़र्ज़ क़र्ज़ अब चुक गए सब
चुक गया बचपन बेचारा
चुक गए सूखे से कुछ क्षण
आयेंगे न अब दोबारा
सालता है अब तलक
वो पल जो मेरा कल नहीं थ।