माँ का स्नेह / साधना जोशी
स्नेह अनमोल है माँ का,
सींचती है वह ।
खून के बूँदों से,
ममता के सागर से ।
पोशण करती है,
कश्टों को सहकर ।
जीवन की कठिन राह में,
अडिग रह कर ।
मिटा सका नहीं,
उम्र को कोई भी पड़ाव ।
माँ के वात्सल्य को,
जीवन की कोई आँधी ।
उड़ा नहीं पायी उसके,
आँचल की छाँव को ।
ममता की गागर में,
अमृत की धारा है माँ।
वह बनी षेरनी चण्डिका,
अपनी ममता के लिए ।
पषु पक्षी भी माँ के,
फर्ज को दर्षाते हैं ।
सड़कों के किनारे बैठकर,
अपने बच्चों को
सीने से लगाते हैं ।
दाना खिलाकर,
दूध पिला कर ।
दुनियांॅ के हर रिष्तों से,
सबसे अनोखी ही मां,
प्यारी है मॉं सबसे न्यारी है मॉं।
दुनियाँ के बच्चों,
अपने हृदय को छू लो ।
मां के उपकारों को,
कभी न भूलों ।
जीवन की ऊचाइयों,
में जाने से पहले,
प्यार से माँ कदमों के छू लो।