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माँ की आँखें / एकांत श्रीवास्तव

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यहां सोयी हैं
दो आंखें
गहरी नींद में

मैं अपने फूल-दिनों को
यहां रखकर
लौट जाऊंगा

लेकिन लौट जाने के बाद भी
हमें देखेंगी ये आंखें
हम जहां भी तोड़ रहे होंगे
अपने समय की
सबसे सख्‍त चट्टान

जब हम बेहद थके होंगे
और अकेले
ये आंखें हमें देंगी
अपनी ममता की खुशबू

ये आंखें
हमारे अंधेरों में खुलेंगी
रोशनी की खिड़कियां बनकर

हम
इस पृथ्‍वी पर
इन आंखों के
सपने बनकर बचे हैं.