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माँ की आँखों में पिता / मुसाफ़िर बैठा

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मेरी अभी की बत्तीसा वय में
पिता से टूट चुका था
मेरा दुनियावी नाता
जबकि अपने छहसाला पुत्रा की उम्र में
मैं रहा होऊंगा तब

अब तो पिता के चेहरे का
एक कोना तक याद नहीं मुझको
नहीं स्मरण आता मुझे
पिता का कहा बोला एक भी हर्फ
बरता हुआ कोई बात व्यवहार
जो मेरे प्रति उनके भाव स्वभाव
डांचपुचकार हंसीदिल्लगी रोषप्रीति के
इजहार का एक कतरा सबूत भी जुटा पाता
और मैं अपनी नन्हीं जान संतान की
कम से कम उस हठ प्रश्न की आमद से
अपना पिंड छुड़ाने की खातिर उन्हें परोस पाता
कि तुम्हारे दादा ऐसे थे वैसे थे
कि कैसे थे

पिता के बारे में
मेरी यादों के रिक्थ का
सर्वथा रिक्त रह जाने का
खूब पता है
मेरी उम्र जर्जर मां को
जिसके खुद के कितने ही मान अरमान
दुनियादारी के मोर्चे पर
विफल रह गए पिता के
असमय ही हतगति होने से
रह गए थे
कोरे अधपूरे अनपूरे
और अनकहे तक

कहती है मां
   तुम्हारे पिता तो
   नादान की हद तक थे भोले
   उन्हें तो अपने बच्चों तक पर
   प्यार लुटाना नहीं आता था
   मेरे मन में झांक पाने की
   बात तो कुछ और है

मेरी मूंछों से
अपनी मां की स्नेहिल मौजूदगी में
खेलते चुहल शरारत करते
अपने पोते को देखकर


मेरे पिता के चेहरे को
मुझमें ढूंढ़ती शायद
कहीं और खो जाती है बरबस मां

बाप बन अब मैं समझ सकता हूं खूब
कि मुझ बाप बेटे का
राग रंग हंसी दिल्लगी निरखना
मां को बहुत प्यारा अपना ही रूपक सा
क्यूंकर लगता है ।

2005