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माँ की ममता जग से न्यारी! / शम्भुनाथ तिवारी

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माँ की ममता जग से न्यारी!

अगर कभी मैं रूठ गया तो,
माँ ने बहुत स्नेह से सींचा।
कितनी बड़ी शरारत पर भी,
जिसने कान कभी ना खीँचा।
उसके मधुर स्नेह से महकी,
मेरे जीवन की फुलवारी।
माँ की ममता जग से न्यारी!


बिस्तर-बिना सदा जो सोई,
मेरी खातिर नरम बिछौना।
मुझे बचाया सभी बला से,
बाँध करधनी लगा डिठौना।
सारे जग से जीत गई पर,
मेरी जिद के आगे हारी।
माँ की ममता जग से न्यारी!

माँ, तेरी प्यारी बोली का,
दुनिया भर में मोल, नहीं है।
तेरी समता करनेवाला,
हीरा भी अनमोल,नहीं है।
तेरी गोद स्वर्ग से सुंदर,
तू सारी दुन्या से प्यारी।
माँ की ममता जग से न्यारी!

चाहे कितनी मजबूरी हो,
माँ, बच्चे को नहीं सतातीष
अपना दर्द छुपाए दिल में,
उस पर सारा प्यार लुटाती।
तन–मन न्योछावर कर देती .
सुनते ही शिशु की किलकारी।
माँ की ममता जग से न्यारी!

भले कोई माँ के कदमों में,
जीवन भर भी शीश झुकाए।
मगर कभी क्या मुमकिन भी है,
कि वह माँ का कर्ज चुकाए?
माँ की एक साँस भी शायद,
पूरे जीवन पर है भारी।
माँ की ममता जग से न्यारी!