यह टूटी-फूटी जीर्ण अँगीठी,
मेरे शैशव की स्मृति है,
यह जो निज सूनेपन में,
उपहासित रीती-रीती है।
आज न तेरे उर में अगनी,
और न मेरे उर में आशा,
बने हुए हैं हम-तुम दोनों,
किस बीते युग की परिभाषा।
यह टूटी-फूटी जीर्ण अँगीठी,
मेरे शैशव की स्मृति है,
यह जो निज सूनेपन में,
उपहासित रीती-रीती है।
आज न तेरे उर में अगनी,
और न मेरे उर में आशा,
बने हुए हैं हम-तुम दोनों,
किस बीते युग की परिभाषा।