माँ के बिना / बिन्देश्वर प्रसाद शर्मा ‘बिन्दु’
रोता नहीं सिसकता हूँ मैं
माँ के बिना तरसता हूँ मैं,
वो सारी बचपन की यादें
अपने दिल में रखता हूँ मैं।
उनको कैसे भूल मैं जाऊँ
अपने आप सिमटता हूँ मैं,
वो आँचल की छाँव कहाँ है
माँ के बिना भटकता हूँ मैं।
चलना हमे सिखाया जिसने
फूलों सा महकाया जिसने,
उनको वापस कैसे लाऊँ
लोरी नींद में गाया जिसने।
खालो बेटा भूख लगी है
मैं सोया वह रात जगी है,
मैं तो अभी-अभी है खाया
ऐसा कह वह मुझे ठगी है।
उसने सींचा बचपन मेरा
याद रखी थी हर क्षण मेरा
जिग़र का एक टुकड़ा था मै
विचलित हुआ नहीं मन मेरा।
माँ तुम मुझसे दूर गयी क्यों
हमको ऐसे भूल गयी क्यों,
माँ मै कैसे रह पाऊँगा
पंच रत्नों में घूल गयी क्यों।
वो तावे की गर्म रोटियाँ
वो पत्थर की बनी गोटियाँ,
अभी भी याद है वह मुझको
वो लम्बी बचपन की चोटियाँ।
माँ से बड़ा न दूजा कोई
इससे बड़ा न पूजा कोई,
मंदिर – मस्जिद सब बेकार
मुझे अबतक न सूझा कोई।
स्वर्ग से क्या कम है माई
कालों के भी यम है माई,
हमें इस पर गर्व है करना
दुनिया की दमखम है माई।
ममता, प्रेम की सागर है माँ
करूणामयी गागर है माँ,
उनकी सेवा भक्ति करना
घर – आँगन की जैसी है माँ।