माँ के लिए / राखी सिंह
कितने वर्ष बीत गए होंगे फिर भी
कल की ही बात लगती है
कि दो दिन रह जाये सर्दी-खांसी
तो माँ कर डालती थी कितने टोटके
कहाँ कहाँ के कितने अजूबे नुस्खे आते थे उसे
-हतना गोर काहे ला भयलु
घुडी घुडी नजरियाईये जा लू!
कितना चिढ़ते थे हम
कैसा विज्ञान है
नज़र नाक में घुस जाती है
अब जब तकिये के नीचे सपनो से अधिक
रखी जाती हैं दवाइयाँ
पढ़ी जा रही कोई प्रिय किताब
सिरहाने रखना भूल जाएँ भले
नही भूलनी चाहिए दवाओं की पोटली
के मानो यही ऑक्सीजन हो।
ऑक्सीजन ही तो है!
माँ के बाद कोई नहीं करता बेटियों के लिए कोई टोटका
जब नहीं रहतीं दुलार में नखरैल हुई बेटियों की माएँ
बेटियाँ समझदार गृहिणी बन जाती हैं
होता है बच्चे को मामूली बुख़ार
सारा विज्ञान भूल
निहुछने के लिए खोजती हैं
रसोई में राई-मिरचाई।