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माँ के हाथों बनी चाय / प्रभुदयाल श्रीवास्तव
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रखा जीभ पर मीठा,
मीठा स्वाद अभी तक।
मां के हाथों बनी,
चाय है याद अभी तक।
खुली आँख से भले न,
उससे मिल पाता हूँ।
सपने में होते रहते,
संवाद अभी तक।
" राजा बेटा उठ जाओ,
हो गया सबेरा"।
कानों में गूंजा करती,
आवाज़ अभी तक।
कितने शेर दिलेर,
बहादुर देखे हमने।
नहीं मिला है माँ जैसा,
जांबाज़ अभी तक।
सारी मांओं से अच्छी,
जग में मेरी मां।
होता रहता हर दिन यह,
अहसास अभी तक।