माँ के हाथ / तिथि दानी ढोबले
ज़मीन पर बिछे गद्दे पर
लेट गई थी मैं शिथिल होकर
तभी मेरे सिर पर
फेरा था हाथ मेरी माँ ने
राहत में तब्दील हो गयी थी
उसी क्षण मेरी शिथिलता
नज़र आने लगे थे
मुझे कई इंद्रधनुष
अपनी माँ के उन हाथों में
जिसकी उँगलियाँ हो गयी थीं टेढ़ी-मेढ़ी
शायद पहले कभी
ग़ौर ना किया होगा
मैंने इस तरह।
पल भर में त्वरित गति से
मेरी स्मृति के पन्ने
पलटने लगे थे
पीछे की ओर
मुझे नज़र आने लगी थीं
माँ की वो ख़ूबसूरत उँगलियाँ
जो जलाई थीं उसने
कई दुनियादारों की फ़रमाइश में
और सबसे ज़्यादा
मुझे स्वाद की गर्माहट देने में
मैंने सीखा था
माँ की उँगलियों से
खुद जलकर
दूसरों के हृदय को
शीतल करने का नुस्ख़ा
झाँका था मैंने
माँ की जली-कटी
उँगलियों के घावों की गहराई में
जिसमें मुझे दिख रहे थे
कई लोगों के मुस्कुराते चेहरे
माँ कहती थी मुझसे
अपनी हथेलियाँ फैलाकर,
इन हाथों ने
ना जाने क्या-क्या किया
और आज देखो
क्या हो गयी इनकी हालत
माँ की बात
समझ नहीं आयी थी मुझे
मैं सोच रही थी कि
माँ ने पा लिया है
अपना वजूद
तितली, झरने, कोयल, जंगल, जानवर
आज सब हैं उसके साथ
माँ को कुछ
दे सकने की स्थिति में भी
चाहती थी मैं
कुछ माँगना उससे
क्या अपनी यंत्रवत सी ज़िंदगी में
मेरे हाथों में
कभी किसी को
दिखेगा मेरा वजूद
मैंने उससे कहा
वो दे मुझे हथियार
जो दे मुझे काम
उससे दूर रहने पर
दुनिया वालों से लड़ने में।
पर उसने मेरे हाथों में थमायी बाँसुरी
और कहा उसे बजाना सीखने के लिए।