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माँ तुम्हारे द्वार पर मस्तक नवाया बार बार / रंजना वर्मा

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माँ तुम्हारे द्वार पर मस्तक नवाया बार बार ।
और यह भी सच तुम्हारा प्यार पाया बार-बार।।

तुम विराजो पद्म पर या ब्रह्म मुख में हो निवास
भीर पड़ने पर तुम्हीं को है बुलाया बार-बार।।

करें अभिलाषा सभी रख ह्रदय में विश्वास आस
शारदे तुमने कृपा का धन लूटाया बार-बार।।

आस हो अभिलाष हो या नाम की जागी हो चाह
है सभी ने तुम्हीं से संतोष पाया बार-बार।।

वेद गीता धर्म की कोई करे क्या आज बात
इन सभी ने साँवरे को आजमाया बार-बार।।

सिर्फ मानव ही नहीं हर जीव ने माना तुम्हें
हर किसी ने दर तुम्हारे सिर झुकाया बार-बार।।

हो गया दुर्बल बहुत तन किंतु मन करता विरोध
यत्न से रोका मगर संयम भुलाया बार बार।।