माँ तुम मेरी हो / संध्या रिआज़
दूर तक फैला आसमान
यूं लगा जैसे बांहें खोले हुए
मां का आंचल देता है यकीन
कि मत डरो आगे बढ़ो
कुछ होगा तो हम हैं
कि हम हैं तुम्हें संभालने को
तुम न गिरोगे न ठोंकरें खाओगे
दूर-दूर तक दिखती ज़मीं भी
यही देती है यकीं
कि दौड़ जाओ,आगे बढ़ो,मुड़ो न कभी
मां की बांहों सी फैली ये ज़मीं
जो देती है एहसास
कि कोई है जो हम पर ममता भरी आंखों से
दिन रात जागकर रखता है नज़र
कि ना हो जायें हम ओझल
क्योंकि हम हैं अंष उसका ही
जे अलग होकर भी
होता नहीं कभी भी अलग
ज़िन्दगी के हर मोड़ पर
अलग-अलग रूप मंे
बाहें फैलाये मां मिलती है
हमसे दूर जाने के बाद भी
दूर कहीं जाती नहीं
क्योंकि हम असल में हम नहीं हैं
हम उसी मां का हिस्सा हैं
जो अलग होके भी उसी से जुड़ा है
इस बंधन को बांधने के लिए
कोई डोर नहीं होती
ये जुड़ा है ठीक है वैसे
जैसे जुड़ा है आसमान धरती से
यहां से वहां तक,वहां से यहां तक
जन्म से मृत्यु तक,मृत्यु से जन्म तक
मां मुझे पता है तुम अब भी हो यहीं कहीं
धरती और आसमान के बीच हर जगह
लेकिन मेरे बहुत ही पास
इतना कि मैं गिरुं तो तुम थाम लो
मैं भटकूं तो तुम सही राह दो
मैं सोउं तो तेरी लोरी कानों में गुनगुना उठे
मैं जागूं तो अपने सपने याद रहें
तुम मुझमें ही कहीं हो मां
ऐ मां तुम मेरी हो............