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माँ दुर्गा की प्रतिकृतियाँ / कविता कानन / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
ठहर आततायी,
मत समझ
हमें असहाय
दुर्बल
सहज प्राप्य ।
हम भण्डार हैं
शक्ति की
माँ दुर्गा की
प्रतिकृतियाँ ।
काट देंगी
अपनी ओर
उठने वाले
कलुषित हाथों को
मिटा देंगी
अस्तित्व
अनाचारियों का ।
हम हैं
कुसुम कोमल
स्नेह की देवी
ममता की मूर्ति
दया की प्रतिमा
किन्तु
आपद काल में
करवाल सी कराल
मृत्यु स्वरूपिणी ।
कर देंगी विनाश
दुराचारियों का
अपनी अनेक
भुजाओं से ।