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माँ पर दोहे / आराधना शुक्ला
Kavita Kosh से
अम्मा, मम्मी, माँ कहो, मॉम कहो या मात।
धरती पर माँ ईश है, माँ अनुपम सौगात।।
दीपक, बाती, तेल है, माँ ही है उजियार।
बिजली, बादल, बूँद माँ, माँ बरखा की धार।।
नदिया, पानी, प्यास है, है माँ तृप्ति अशेष।
भक्त, भजन माँ भक्ति है, माँ भगवन का भेष।।
पंछी, पर, परवाज़ माँ, माँ नभ का विस्तार।
जग, जननी, माँ जीवनी, माँ जीवन का सार।।
क्यारी, कोंपल, पंखुड़ी, कोमल कुसुम अनूप।
माँ माटी निर्माण की, माँ ममता का कूप।।
कागज़, कलम, दवात माँ, माँ कविता माँ गीत।
माँ सुर, सरगम, साज़ है, माँ शाश्वत संगीत।।
रूपक, उपमा, श्लेष माँ, माँ अनुपम उपमान।
रामायण, गीता, शबद, माँ ही पाक क़ुरान।।