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माँ से बढ़कर / उषा यादव
Kavita Kosh से
माँ तो है ममता की मूरत,
उसने हमको जन्म दिया है।
पाल-पोसकर, कष्ट उठाकर,
नेह लुटाकर बड़ा किया है।
खुद गीले में सोई है वह,
सूखी जगह सुलाया हमको।
सुख की नींद भूलकर अपनी
रातों में थपकाया हमको।
संग हमारे वचन तोतले
बोल, बोलना सिखलाया है।
उसकी मेहनत से ही हमको
पढ़ना-लिखना से ही हमको
यह पढ़ना-लिखना आया है।
खुद काँटों में चलकर उसने
फूल हमारे पथ बिखराए।
इस दुनिया में माँ से बढ़कर
दूजा कोई नजर न आए।