माँ हमेशा ही दुआ करती है
छाँव आँचल की दिया करती है
जब चमन में खिले कली कोई
खुशबू हर ओर उड़ा करती है
सिर्फ लड़ने को ही अँधेरों से
शम्मा हर रात जला करती है
दर्द जब हद से गुजर जाये तो
खुद ब खुद पीर दवा करती है
हर मुहब्बत से भरे आँगन को
बाँट नफरत ये दिया करती है
जो वतन के दिवाने हैं होते
ये जमीं उनसे वफ़ा करती है
जिनके सर पर हो बाप का साया
उनकी तक़दीर खुला करती है