Last modified on 14 जुलाई 2019, at 19:48

माँ है रेशम के कारख़ाने में / अली सरदार जाफ़री

माँ है रेशम के कारख़ाने में
बाप मसरूफ़ सूती मिल में है
कोख से माँ की जब से निकला है
बच्चा खोली के काले दिल में है

जब यहाँ से निकल के जाएगा
कारख़ानों के काम आएगा
अपने मजबूर पेट की ख़ातिर
भूक सरमाये की बढ़ाएगा

हाथ सोने के फूल उगलेंगे
जिस्म चान्दी का धन लुटाएगा
खिड़कियाँ होंगी बैंक की रौशन
खून इसका दिये जलाएगा

यह जो नन्हा है भोला-भाला है
खूनी सरमाये का निवाला है
पूछती है यह, इसकी ख़ामोशी
कोई मुझको बचाने वाला है !