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माँ / अपर्णा अनेकवर्णा
Kavita Kosh से
ये कपड़े माँ ने दिए हैं..
वो कर्णफूल भी..
और हाँ.. दाएँ बाजू पर एक नन्हा तिल..
लोग कहते हैं, अपनी झलक दी है..
और पिता कहते हैं, अपना स्वभाव भी..
बहुत कुछ दिया है माँ ने मुझे जीवन के साथ..
पर मुझे लगता है.. अपना सब्र रख लिया है अपने पास..
अब भी शान्त बैठ कर मेरी बेचैनी
सुनती-गुनती रहती हैं..
और अपनी 'सर्वज्ञ' मुस्कान लिए..
हर बार की तरह.. एक बार फिर..
थाम लेती हैं.. साथ देती हैं..
मेरे मौन में भी भाँप लेती हैं
मेरी उदासी, ऊब, बीमारी..
इतने वर्षों में बस ये बदला है..
कि अब मुझ से पहले रेवा है उनके लिए..
मूल से सूद प्यारा जो होता है