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माँ / उर्मिल सत्यभूषण

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देवताओं जी पुजो माँ तुम
प्रेरणा बनकर बसो माँ तुम
कर्त्तव्य के हेतु किया
सर्वस्व अपना दान
अमृत पिला कर औरों
को करती रही विषपान
मिटते-मिटते भी रहा
कर्त्तव्य का ही ध्यान
निर्जीव शव के अधरों
से भी झर पड़ी मुस्कान
आओ, अन्तर में चली आओ
सुहानी मूर्त्ति बनकर सजो माँ तुम
तुमने सदा सबके प्रति कर्त्तव्य ही निभाये
पर वफा न तुमसे की इस जिं़दगी ने हाय
आखिरी दम भी दृगों ने आशीष ही लुटाये
मूंद ली आँखें हमारे सामने असहाय
तड़पते अब प्यार के भूखे हृदय
बन नेह की वेणु बजो माँ तुम!
अपराजिता थी माँ गई
क्यों मौत से तुम हार
स्वर गया क्यों टूट
जो था बन बिखरता प्यार
हाय! बंद क्यों हो गई
वो मलय शीतल बयार
बिलखती मनुहारे माँ
करती नहीं स्वीकार
तप रही मरूमूमियाँ बन
प्यार की बदली बरसो माँ तुम,
तेरी समाधि पर अगर माँ
हम चढ़ायें फूल
तेरी समाधि की अगर
मस्तक लगायें धूल
नादान शिशुओं की,
क्षमा करना समझ कर भूल
हाय प्रभु! इस मोह से
गड़ते हैं कैसे शूल
कारे अंधियारे दिलों में
ज्ञान ज्योति से जलो माँ तुम
अश्रु भीगे मुंह से तुमको
झुकाते माथ
शक्तिमयी रखना सिरों पर
वरद् अपना हाथ
प्रार्थना करते-करते भी
रो दिये हम मात
एक सत्ता अंश बन
देना मेरी माँ! साथ
वहन जीवन को करें
बन, शक्ति की सरिता
बहो माँ तुम।