भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
माँ / एस. मनोज
Kavita Kosh से
सुख दुख में एक आस तुम्हीं थी
मां मेरा विश्वास तुम्हीं थी
असह्य वेदना के भी क्षण में
कलुष नहीं उपजे थे मन में
तुमने ही सद्ज्ञान सिखाया
कर्मयोग का पाठ पढ़ाया
ज्योति पुंज संसार तुम्हीं थी
हर सुख का आधार तुम्हीं थी
तुम ही मरियम, तुम ही सीता
हम सब की रामायण गीता
तुम से ही सुरभित फुलवारी
पुष्प चमकते क्यारी क्यारी
हर क्यारी की जड़ में माँ है
सुरभित होता सकल जहां है
तुमको समिधा में प्रतिवेदित
अश्रुपूर्ण है नमन निवेदित