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माँ / किरण मिश्रा
Kavita Kosh से
हर माँ
ख़ामोशियों की खपच्चियों से
करती है पिता के गुस्से का सामना
आँसुओं से करती है प्रतिवाद
उसकी ख़ामोशियों में हो जाते है शामिल बच्चे
फिर धीरे-धीरे
सन्नाटा छँटने लगता है
माँ की नम आँखों में
अपनी सजल आँखे मिलाते पिता
माँ के हदय को छूते है
फिर सुख-दुःख की गठरी
एक साथ ढोने लगते है
ऐसा होता है
हर घर में
कभी न कभी