भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
माँ / नवीन सागर
Kavita Kosh से
वह दरवाज़े पर है
उस पार से बहुत बड़ी दुनिया
पार कर के दस्तक
जब दरवाज़े पर होगी
तब के लिए वह रात भर
दरवाज़े पर है।
वह एक भूली हुई चीज़ है।
भगवान के अपने लिए मौत
मेरे लिए सब कुछ माँगती
काम करती अपना
अकेली घर में जब तक है
घर में दिये का उजाला है।
आज मुझे उसकी याद
आ रही है अभी।
मुझे अभी उसे भूल जाना है
दरवाज़ा बंद होते ही
बाहर रह जाएगी वह
और दस्तक नहीं देगी।