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माँ / पुष्पिता
Kavita Kosh से
पृथ्वी छोड़कर
माँ के जाने पर भी
माँ बची रहती है
संतान की देह में।
संतान की देह
माँ की पृथ्वी है
माँ के देह त्यागने पर भी।
माँ के जाने पर भी
माँ बची रहती है
प्राण बन कर।
कठिन समय में
शक्ति बनकर
बची रहती है माँ।
माँ के जाने पर भी
बचपन की स्मृतियों में
बची रहती है माँ।
माँ अपने जाने पर भी
बची रहती है
अपनी संतानों में
शुभकामनाएँ बन कर।
माँ जाने पर भी
कभी नहीं जाती है
बच्चे बूढ़े हो जाएँ फिर भी।