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माँ / भाग २२ / मुनव्वर राना
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रात देखा है बहारों पे खिज़ाँ को हँसते
कोई तोहफ़ा मुझे शायद मेरा भाई देगा
तुम्हें ऐ भाइयो यूँ छोड़ना अच्छा नहीं लेकिन
हमें अब शाम से पहले ठिकाना ढूँढ लेना है
ग़म से लछमन की तरह भाई का रिश्ता है मेरा
मुझको जंगल में अकेला नहीं रहने देता
जो लोग कम हों तो काँधा ज़रूर दे देना
सरहाने आके मगर भाई—भाई मत कहना
मोहब्बत का ये जज़्बा ख़ुदा की देन है भाई
तो मेरे रास्ते से क्यूँ ये दुनिया हट नहीं जाती
ये कुर्बे—क़यामत है लहू कैसा ‘मुनव्वर’!
पानी भी तुझे तेरा बिरादर नहीं देगा
आपने खुल के मोहब्बत नहीं की है हमसे
आप भाई नहीं कहते हैं मियाँ कहते हैं