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माँ / मल्लिका मुखर्जी
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धूप   कड़ी  सहकर  भी  माँ तुम, कभी  न हारी यौवन  में,
धरम  तुम्हारा  खूब   निभाया, तुमने  अपने  जीवन  में !
सहम  रही  ममता  पलकों  में, नज़र तुम्हारी झुकी-झुकी,
तड़प रही  है  धड़कन भी  अब, साँस तुम्हारी रुकी-रुकी ।
न्योता   दिया  बुढ़ापे   ने  अब  तुमको  अपने  आँगन  में !
गूँज   रही   कानों   में   मेरे    वही   तुम्हारी   मुक्त  हँसी, 
आज    कराहों   में  भी  तो है  छुपी  हुई  मुस्कान  बसी !
हाय   जिंदगी  सजी-सजाई, बीती  कितनी  उलझन  में !
टूट   गए  कुछ  सपने  तो  क्या,  रात  अभी  भी  बाकी है,
और  नए   कुछ   सज  जाएँगे, प्रात   अभी  भी बाकी  है ।
ढलती  संध्या  में  भर  लो  तुम जोश नया अपने तन में !
	
	