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माँ / रोहित आर्य

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करता शत्-शत् नमन् मैं तुझे मेरी माँ,
इतना सुन्दर मुझे तूने जीवन दिया।
मुझको सौभाग्य से तेरी गोदी मिली,
खूबसूरत मुझे अपना दामन दिया॥1॥
करता शत्-शत् नमन्...
कोख में अपनी तूने है पाला मुझे,
नौ महीने तलक है सँभाला मुझे।
झेलकर घोर पीड़ा प्रसव की यहाँ,
इतना सुन्दर मुझे तूने है तन दिया॥2॥
करता शत्-शत् नमन्...
कितने कष्टों से तू पालती थी मुझे,
अच्छी आदत सदा डालती थी मुझे।
धन्य मैं हो गया पा के आँचल तेरा,
खेलने को मुझे अपना आँगन दिया॥3॥
करता शत्-शत् नमन्...
मैं जगाता रहा था तुझे रात भर,
तू सुलाती थी मुझको स्वयं जागकर।
मेरी खातिर तू गीले में सोती रही,
किंतु सूखा मुझे अपना दामन दिया॥4॥
करता शत्-शत् नमन्...
तोतली भाषा मेरी समझती रही,
बोलता देख कर मुझको हँसती रही।
गन्दा करता रहा तुझको मल-मूत्र से,
साफ कर मुझको बिस्तर था पावन दिया॥5॥
करता शत्-शत् नमन्...
चोट लगती मुझे तू तड़प जाती थी,
मेरी खातिर किसी से भी लड़ जाती थी।
बाबा की डाँट से तू बचाती रही,
खुल के जी लेने का है मुझे मन दिया॥6॥
करता शत्-शत् नमन्...
जब कभी होता बीमार मैं था यहाँ,
अपने सर पर उठा लेती सारा जहाँ।
मैं नहीं जब तलक ठीक हो जाता था,
खुद को आराम न तूने एक क्षण दिया॥7॥
करता शत्-शत् नमन्...
काला-गोरा नहीं मैं तेरा लाल था,
था कन्हैया, मैं ही तेरा गोपाल था।
मेरे आगे तुझे कुछ भी सूझा नहीं,
मुझको खुशियों से भरपूर सावन दिया॥8॥
करता शत्-शत् नमन्...
इतने एहसान हैं न चुका सकता मैं,
उम्र भर गाऊँ फिर भी न गा सकता मैं।
हो गया माँ मैं तेरा युगों तक ऋणी,
अपनी गोदी-सा सुन्दर ये आँगन दिया॥9॥
करता शत्-शत् नमन्...
चाहे संसार में मैं कहीं घूम लूँ,
मुझको माता मिली इसलिए झूम लूँ।
जिन्दगी तेरे चरणों में मैं काट दूँ,
करके तूने दया मुझको यह तन दिया॥10॥
करता शत्-शत् नमन्...
मुझको अब स्वर्ग की है ज़रूरत नहीं,
तेरी गोदी से कुछ खूबसूरत नहीं।
चूम लूँ तेरे चरणों को ऐ मेरी माँ,
क्योंकि तूने मुझे अपना दामन दिया॥11॥
करता शत्-शत् नमन्...
तू नहीं चाहती तो न आता यहाँ,
जिन्दगी मैं ये हरगिज न पाता यहाँ।
आया संसार में ये दया है तेरी,
तूने दुनियाँ में "रोहित" को जीवन दिया॥12॥
करता शत्-शत् नमन्...