माँ / विजय चोरमारे / टीकम शेखावत
रेस के घोड़े
कब के निकल चुके हैं मस्तिष्क में
केवल टापों का रणक्रन्दण
न जाने कैसे-कैसे तनाव
चुभतें हैं ज़िन्दगी को
कब होती है रात पूरी
कब होता हैं दिन प्रारम्भ
कुछ समझ नहीं आता!
यहाँ किसी भी चौराहे पर
नहीं मिलता कोई अजीज़
पहचान के सभी हैं भीड़ में तब भी
किसी को आवाज़ दे, ऐसा नहीं कोई भी
मुझे ही मेरे जीने का अर्थ
बताने की हर किसी की पुरज़ोर कोशिश
सिग्नल सिस्टम की डोर भी हैं उन्ही के पास
ट्राफ़िक पुलिस भी उन्ही में हैं शामिल
हर चौराहे पर खड़े
बहुराष्ट्रीय कुर्ते में पुतले
और यह पुलिस की यूनिफ़ार्म
किसने की है स्पांसर?
मैं इन्तज़ार कर रहा हूँ
पलकें बिछाए
ग्रीन सिग्नल का
रेड सिग्नल है कि हटता ही नहीं
भीड़ में, मैं कुछ खोज रहा हूँ
क्या खोज रहा हूँ?
ऐसा कोई जो मुझे बताए
मेरा घर किस दिशा में है।
मूल मराठी से अनुवाद — टीकम शेखावत