माँ / स्वरांगी साने
ये मेरी माँ का बगीचा है
इस नीम के पेड़ से गिनती है
वह मेरे भैया की उम्र
पैदा हुआ था भैया
तब लगाया था नीम
कि उसी तरह
ऊँचा उठेगा भैया
पकड़ रखेगा जड़ मजबूती से
देगा ठंडी हवा और छाया भी
बुढ़ापे में
मुझे वो तौलती है
तुलसी के साथ
हर स्थिति में पवित्र रहने का विश्वास है
तुलसी और मुझसे
इस वटवृक्ष को
मानती है अपना पति
सुख-दु:ख में
दृढ़ता से
खड़ा रहने वाला सहारा
उसके बगीचे से आती है
मिट्टी की महक
और ताज़ी हवा
हिलते हरे पत्तों के साथ
ये माँ का घर है
करीने से सजा हुआ
घर में रहता है हमेशा सुवास
और ताज़ापन साथ-साथ
ये माँ की रसोई है
उसे पसंद नहीं भोजन का बासा होना
सुबह वह देती है
चिड़ियों को दाना
बिल्ली को दूध
रोटी कुत्ते को
और बनाती है ताज़ा गो ग्रास
वह हर जगह होती है
हर समय होती है
हम कभी भी पहुँच जाते हैं
और माँ होती है
जादू की कुंजी की तरह
किसी रात डरते हैं
तो पहुँचते हैं
माँ के पास बेखौफ़ सोने
किसी दिन सिर दबवाने
तो कभी बेतुके सवालों के साथ भी
‘मैं मरने तो नहीं वाली न’
और माँ देती है जवाब
‘ना रे, तुझे तो लंबा जीना है’
हम निश्चिंत हो जाते हैं
माँ कभी झूठ नहीं बोलती
जैसे
माँ की बात सुनते हैं
यमदूत भी
माँ उन्हें भी कहती है
‘ना, अभी मेरे घर मत आना’
और
आ ही जाते हैं कभी
तो देती है
शायद माँ उन्हें भी
चुपके से दही भात
और बचा लेती है
पूरे घर को बासा होने से।