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मांस / शब्द प्रकाश / धरनीदास

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रक्त ववीजते ऊपजै, हृदयेतेवहिराय।
धरनी कहै निषिद्ध है, मांस कोई जनि खाय॥1॥

धरनी मांस न बूझिये, मानुष करै अहार।
पशु पंछी कृमि खातु हैं, बिना विवेक विचार॥2॥

मांस करने जिय वधै, सो पापी हत्यार।
धरनी होइहै कौन गति, साहेब के दर्बार॥3॥

तनिक जीभ के करने, जीव न मानै त्रास।
धरनी देखा आन करि, काय-बीचमलमांस॥4॥

माँस अहारी जीयरा, सो पुनि कथै मियान।
नंगी होइ घूँघट करै, धरनी देखि लजान॥5॥

साधु वेद वरजै कहै, धरनी समुझि न येह।
माँस खाय फल पाइहो, जा दिन देह विदेह॥6॥

धरनी दुनिया आँधरी, कौन करै बरजीद।
माँस मोह मद छोड़िया, फरकै रहै फरीद॥7॥