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मां / इरशाद अज़ीज़
Kavita Kosh से
कीं नीं कैवै बा
देखती रैवै टकटकी लगा‘र
पुरस्योड़ी थाळी नैं
पसवाड़ै राख
अर करती रैवै
आपरै सांवरियै सूं
अरज म्हारै खातर
म्हैं जद तांई
घरां नीं पूगूं
म्हारी मां
करती रैवै उजाळो
म्हारै मारग
जगावती रैवै आपरी
अरदास रा दीवा।