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मां / मुकेश मानस
Kavita Kosh से
तू आज है
क्योंकि कल तू लड़ी थी
मौत के तूफान में
जिन्दगी की खातिर अड़ी थी
तू ऐसे ही पली
घुप्प अन्धेरे में जुगनु-सी जली
नई सुबह की आशा भरी कली
तू आज है
कि कल तू अकेली थी
बेसहारेपन की पीड़ा
अकेले-अकेले झेली थी
कल चुप था
पैगम्बर या अवतार
आज तू बांटती
स्नेह, ममता, प्यार
शान्ता जी के लिए
रचनाकाल:1996