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माइ हे, परम छिनारी छै, दुलहा के माय / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

माइ हे, परम छिनारी छै, दुलहा के माय।
माय हे, देखिऔन<ref>देखिए</ref> दूधकट्टू<ref>वह लड़का, जिसे अपनी माँ का दूध अधिक दिनों तक पीने का अवसर न मिला हो। जन्म के कुछ ही दिनों बाद ही जिसकी माँ गर्भवती हो गई हो या मर गई हो।</ref> जकाँ<ref>जैसा</ref> मुहँमा सुखाय॥1॥
माइ हे, दुलहा के माय छै, बड़ ढहलेल<ref>बेवकूफ</ref>।
माइ हे, कनिको<ref>थोड़ा भी</ref> ने जुरलैन<ref>मिला; प्राप्त हुआ; जुरा</ref>, उबटन तेल॥2॥
माइ हे, केना<ref>कैसे</ref> कहबैन, छिका अपन बाप के बेटा।
माइ हे, मुँह त लागै छैन, बाभन के बेटा॥3॥
माइ हे, सुनिऔन बात एगो, बड़ अजगूत<ref>अचरज-भरा</ref>।
माइ हे, लागै छथ जेना इहो, लौअबा<ref>नाई का</ref> के पूत॥4॥
माइ हे, हमरो बाबा के, दिऔन<ref>दीजिए</ref> अपन माय।
माइ हे, तोरो बहिन जोग, भल मोर भाय॥5॥

शब्दार्थ
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