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माई क जियते जे पानी ना दिहल / विनय राय ‘बबुरंग’

माई-बाबू क जियते जे अलग हो गइल
उनकर जिनिगी क रास्ता गलत हो गइल
ऊ केतनो कमाई नाहीं जुरी आंटी भाई
कमाइल बे कमाइल कुल नरक हो गइल।।

माई-बाबू क सेवा से जे दूर हो गई
ब समझी कि बुद्धि ओकर घूर हो गइल
घर तीरथ छोड़ि आवारा अस जे नाचत फिरे
ऊ पढ़ल-बेपढ़ल बेलूर हो गइल।।

माई-बाबू क जियते जे पानी ना दिहल
धिक्कार बा ओ बेटन के जियल बेजियल
अन्त में घंट बांधि जे देत बा पानी
आकर दिहल ई पानी बेपानी दिहल।।

जे माई-बाबू के कान्हे ना अपना लिहल
ऊ अलग बाति बा कहीं दूरे रहल
जे नजदिक होके कुछ कर ना सकल
अइसन बेटन क जिनिगी रहल-बेहाल।।

जे माई क सेवा करे रात-दिन
जे पालल आ पोसल अब रही कै दिन
असली तीरथ इहे ह जानि ल बबुआ
जिनिगी सुख से कटी ना ऊ होई बेदिन।।