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माई हो, हम त दुःख कष्ट से भरल / रवीन्द्रनाथ ठाकुर / सिपाही सिंह ‘श्रीमंत’

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माई हो,
हम त दुःख-कष्ट से भरल
अपना लोर के लड़ी
तहरा सोना का थारी में
बिछुर के
आज सजा के ले आइलबानीं।
तहरा सोना के थारी में
सजा के राखे खातिर
हमरा लगे दोसर बा का?
जननी हो,
तहरा गर में पहिने खातिर
हम त अपना
लोर के लड़ी
मोती का माला लेखा
गूँथ रहल बानीं।
तहरा चरनन में
चान-सुरूज के माला
जगमगा रहल बा
बाकिर तहरा गर में
आ तहरा छाती पर
हमरा दुःख भरल लोरे के लड़ी
सोभा पाई।
लोरे के गहना
सोभ रहल बा
फब रहल बा।
धन धान्य त
तहरे संपदा ह

जेंगईं भावे
तेगईं कर ऽ
देवे के चाह ऽ त द
ना देवे के होय
त मत द
हमरा घर के असली जिनिस
हमार दुखे कष्ट बा।
खाँटी रतन
तू ना चिन्हबू
त के चिन्ही?
चढ़ावा के सही मोल
तू ना लगइबू
ते के लगाई?
अपन तहरा रूचे जँचे
तवन तूं मंजूर कर ल
दे द आपन कृपा
ले ल हमार अहंकार।।