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माई / देवेन्द्र कुमार

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आँगन, घर ओरी है माई
काठ की तिजोरी है माई ।
गाल, पेट, मुँह निहारती
दूध की कटोरी है माई ।।

सरसों-सी फूली-फूली
मत कहना तोरी है, माई ।
अभी-अभी ही पकड़ी गई
बच्चों की चोरी है, माई ।।

सोच रही क्‍या पड़ी-पड़ी
पान की गिलोरी है माई ।
सूई में धागे जैसी
काली, न गोरी है, माई ।।

थोड़े में ज़्यादा, कुछ ज़्यादा
ज़्यादे में थोड़ी है माई ।
साथ-साथ जगती-सोती
माथे की रोरी है माई ।।