माउंटेन मैन-दशरथ मांझी / शीला तिवारी
पहाड़ो से ऊँचा आदमी
उसके थे दृढ़ इरादे
जिसकी ठन गई
पहाड़ों से ठन गई
पहाड़ों ने उसकी मोहब्बत
जीवन का मक़सद
हमसफ़र फगुनिया को छिन लिया
पीड़ा व विछोह में
ले डाला प्रण
पहाड़ का सीना चीरने का
पागल व जुनूनी बन
भूख जिसकी आदत
गरीबी जिसकी क़िस्मत
चल पडा़ छेनी व हथौड़ा लिए
घमंड में अकडा़ अड़ा
पर्वत के घमंड को तोड़ने-फोड़ने
चलता रहा हथौड़ा, छेनी
एक-दो साल नहीं
पूरे बाईस साल।
धूप की तपती गरमी
तूफान व बारिश
लड़ता रहा चट्टानों से,
बना डाला पहाड़ का सीना को चीर कर
एक सुगम, सुन्दर पथ
जिसे देख शर्माए शाहजहाँ का ताजमहल
ये गरीब की बादशाहत का ताजमहल था।
जहाँ न लुटी थी दौलत
लुटी थी तो बस अकेले
गरीब की मेहनत
अनजाने में चुनौती ताजमहल को
प्रेयसी को अनुपम भेंट।
ये था मुफ़लिसी का बादशाह
हमारे बिहार का माउंटेन मैन 'दशरथ मांझी'