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माघक रौद / रामदेव झा

 
किछुए छन धरि
ही भरि हमरा
पी लेम’ दे
सोनहुल रौदा-
हरित घास पर
पीअर-पीअर
छीटल-छाटल
फेंटल-फाँटल
गजपट-गजपट।
के जानए
जँ चाटि जाएत ई
गगन बाट पर
बौखल-बौखल
मेघक कुकूर
लुलुअएले रहि जाएत
देह केर
रोमक चुट्टी-पिपरीक घउदा
रौदक मिसरी-चिन्नी पघिलल
चीखि सकइसँ।