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माघी धूप / अमरेन्द्र
Kavita Kosh से
बर्फे रङ छै अबकी धूप
बड़ी कठोरिन माघी धूप ।
देह जरो नै गरमावै छै
उगवो करै तेॅ बाँझी धूप ।
दादा घर में थरथर काँपै
बड़ी कसाय कनकन्नी धूप ।
बोरसी तर सें बाबा बोलै
मारतै यें मरखन्नी धूप ।
गोड़ लगै छी उगोॅ-उगोॅ
नानी, दादी, काकी धूप ।